• Skip to main content

पहाड़ समीक्षा

पहाड़ समीक्षा

डांडा नागराजा उत्तराखंड पर्यटन स्थल (Danda Nagraja Tourist Place)

by staff

डांडा नागराजा का अर्थ है- पहाडी पर बसे नागदेव, डांडा गढ़वाली बोली का शब्द है जिसका अर्थ है पहाड़ और नागराजा शब्द नागों(सर्प) के राजा को दर्शाता है । काफल, बांज और बुरांश के घने पेड़ो से घिरा डांडा नागराजा मंदिर तीर्थालुओं के लिए आस्था के साथ-साथ आकर्षण का भी केंद्र है। मंदिर के ठीक सामने सुदूर हिमालय में हिमाक्षीद्रित पर्वत मालाएं तथा दूसरी ओर पवित्र घाटी ब्यास आश्रम एवं मां गंगा, नयारनदी की संगम स्थली के मनमोहक दर्शन होते है। पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण पौड़ी शहर से नजदीक काफल, बांज और बुरांश के घने वृक्षों के बीच स्थापित सिद्धपीठ श्री डांडा नागराजा बाहरी पर्यटकों के लिए उतना लोकप्रिय नही है जितना की अन्य देव स्थल । हालांकि यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य की अमूल्य कृतियों में से एक है लेकिन क्षेत्रीय विधायक एवं पर्यटन मंत्री, स्थानीय होने के बावजूद भी यह पर्यटन के लिए प्रयास न कर सके । नतीजा ये हुआ कि अधिकांश राज्य के लोगों व देश के अन्य उन पर्यटकों जो देश विदेश से यहां घूमने आते हैं, को मालूम ही नही है कि डांडा नागराजा पर्वत श्रृंखलाएं कहाँ हैं और उनकी खूबसूरती कैसी है । आज यहां पर जितना भी पर्यटक आता है वह केवल डांडा नागराजा मन्दिर के लिए आता है । लेकिन सर्वाधिक पर्यटक राज्य का ही नागरिक होता है और वह दर्शन के बाद वापस लौट जाता है। क्योंकि इसको पर्यटन के लिहाज से विकसित नही किया गया है इसलिए अधिकांश पर्यटक इस स्थान की पूर्ण सुंदरता का दर्शन किए बिना ही लौट जाता है । डांडा नागराजा मन्दिर इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि यहां से मां चन्द्रबदनी (टिहरी), भैरवगढ़ी (कीर्तिखाल),महाबगढ़ (यमकेश्वर), कण्डोलिया (पौड़ी) की पहाड़ियों की सुन्दरता दिखाई देती है। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है और पूरी श्रद्धा के साथ उनकी प्रार्थना करता है, भगवान कृष्ण उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं। करीब 140 से 150 वर्ष पुराने ऐतिहासिक डांडा नागराजा मंदिर के बारे में मान्यता है कि 140-50 साल पहले लसेरा गाँव में गुमाल जाति के व्यक्ति के पास एक दुधारू गाय थी। जो अन्य पशुओं के साथ डांडा (पहाड़) घास चरने जाती थी। और वहाँ एक पत्थर को हर रोज़ अपने दूध से नलहाती थी। और गाय के घर लौटने पर मालिक को उसका दूध नहीं मिल पाता था। एक दिन जब गाय अपने दूध से पत्थर को स्नान करवा रही थी, कि मालिक ने गुस्से में आकर गाय के ऊपर कुल्हाड़ी से वार कर दिया। किन्तु क्रोधावेश वार गाय को न लगकर सीधे उस पत्थर पर जा लगा जिसे वह गाय अपने दूध से नहला रही थी। कुल्हाड़ी लगते ही पत्थर दो भागों में टूट गया। इस घटना के बाद गुमाल जाति का पहाड़ो से समूल नास हो गया और टूटू हुए पत्थर का एक भाग वहीं पर डांडा नागराजा के रूप में स्थापित हो गया जो बाद में भव्य मन्दिर के रूप में पूजा जाने लगा ।

इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता ऐसी है कि किसी का भी मन मोह ले । मन्दिर तक पहुंचने वाले रास्तों पर प्राकृतिक सौंदर्य की जो अनुभूति मिलती है उसका वर्णन नही किया जा सकता है । बांज और बुराँस के वृक्षों के बीच से निकलती सड़क सीतल और एकांतता की जो अनुभूति करवाती है उसकी कल्पना मात्र से ही मन उमंग से प्रफुल्लित हो उठता है । पहाड़ी के ऊपर पहुंचते ही चारों ओर ऊंची ऊंची पर्वत मालाओं के दर्शन होते हैं । सुदूर हिमवर्णी पहाड़ मानो आंखों में नई ऊर्जा का संचार भर देते हैं । मन्दिर प्रांगण में शान्ति की अनभूति प्राप्त होती है । यहां चढ़ावे में चढ़े घाण्ड (घण्टे) जब नाद करते हैं तो मानों दिशाएँ बोल उठी हो । डांडा नाजराज मंदिर पौड़ी शहर से 34 किमी और देवप्रयाग से 49 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए टैक्सी या बस बुक की जाती है। कुछ तस्वीरों के साथ आपको भी दर्शानार्थ करवाएं चलते हैं । उम्मीद है आपको यह पसन्द आएगा और जब भी आप उत्तराखंड घूमने आएंगे तो डांडा नागराजा के दर्शन किए बिना नही लौटेंगे ।

Related posts:

  1. सेम-मुखेम नागराजा उत्तराखंड पर्यटन स्थल (Sem-Mukhem Uttarakhand Tourist Place)
  2. चंडिका देवी मंदिर उत्तराखंड
  3. नीती-द्रोणागिरी घाटी उत्तराखंड पर्यटन स्थल (Niti-Dronagiri Uttarakhand Tourist Place)
  4. त्रिजुगी नारायण मंदिर उत्तराखंड
  5. लाखामंडल मंदिर उत्तराखंड
  6. Kedarnath Wildlife Sanctuary (केदारनाथ वन्य जीवन अभयारण्य)

Filed Under: General

Copyright © 2023