माना जाता है कि रामायण काल में जब लक्ष्मण मेघनाथ की शक्ति से मूर्क्षित हुए थे तो वैद्य के निर्देश पर हनुमान जी यही संजीवनी को लेने आये थे । सन 1931 में फ्रैंक एस स्मिथ और आर एल होल्डसवर्थ दो पर्वतारोही कामेत पर्वत पर भ्रमण करने आये और लौटते हुए उनको पिंडर घाटी में फूलों से सजी यह पुष्प घाटी नजर आयी । जिससे फ्रैंक एस स्मिथ बहुत प्रभावित हुए और वे वर्ष 1937 में पुनः इस घाटी में आये और उन्होंने यहां के फोलों के सम्बंधित 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नामक पुस्तक लिखी । जिसके बाद यह पुष्प घाटी विश्व प्रसिद्ध हो गयी और देश-विदेश के सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गयी । उस दौर में यहां 500 से अधिक प्रकार के पुष्प खिलते थे, जो समय के साथ साथ घटकर आज 300 से अधिक रह गये हैं । सन 1982 में इस घाटी को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया तथा 14 जुलाई 2005 को यूनेस्को द्वारा नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान को विश्व धरोहर घोषित किया गया है । फूलों की घाटी (नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान) का जन्म पिंडर से हुआ है जिसे पिंडर घाटी भी कहते हैं। इस घाटी का अर्थ इसके नाम में ही छुपा हुआ है । पिंड का अर्थ हिम और घाटी का अर्थ पहाड़ो के बीच की खाई । प्राचीन ग्रन्थों में कहा गया है कि यही देवादी देव महादेव का निवास स्थान है ।
यहां तक पहुंचने का मार्ग:- फूलों की घाटी तक पहुँचने के लिए चमोली जिले का अन्तिम बस अड्डा गोविन्दघाट 275 किमी दूर है। जोशीमठ से गोविन्दघाट की दूरी 19 किमी है। यहाँ से प्रवेश स्थल की दूरी लगभग 13 किमी है जहाँ से पर्यटक 3 किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं। फूलों की घाटी भ्रमण के लिये जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सर्वोत्तम माना जाता है। सितंबर में ब्रह्मकमल खिलते हैं। आज देहरादून से चमोली जिले के लिए हैलीकॉप्टर सेवा भी प्रदान की जाती है । देहरादून से सुदूर स्थित यह घाटी पर्यटकों के लिए आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है अतैव राज्य सरकार यहां तक जाने के सरकारी व निजी बसों के साथ साथ टैक्सी सेवा चालकों को भी अनुमति प्रदान करती है,जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलती है । फूलों की घाटी हर दिन सुबह 7 बजे खुलती है और दोपहर 2 बजे तक अंतिम प्रवेश की अनुमति है। आपको शाम 5 बजे तक घाटी से बाहर निकलने की जरूरत है । आपको सुबह प्रवेश हेतु 6.45 बजे प्रवेश द्वार पर होना चाहिए ताकि आपका प्रवेश टिकट जल्द से जल्द हो और सुबह 7 बजे तक प्रवेश कर सकें। आपका वापसी ट्रेक दोपहर 1.30 बजे से शुरू होना चाहिए ताकि शाम 5.00 बजे तक वापस आ सके।
टिकट प्राप्त कैसे होता है :- वर्ष 2017 में सरकार ने ई-टिकट के माध्यम से पर्यटकों को सुविधा देने का ऐलान किया लेकिन इसके लिए कोई वेबसाइट मौजूदा हाल में पुख्ता रूप से कार्य नही कर रही है । हाँ, उत्तराखंड पर्यटन की एक आधिकारिक वेबसाइट है जिसके माध्यम से आप टूर पैकेज, अपना टूर एजेंट, रहने का निवास स्थान, जैसी जानकारी प्राप्त कर सकतें है । इस वेबसाइट के लिए पर्यटन उत्तराखंड पर क्लिक करें । इसकी एक वजह यह भी है कि फूलों की घाटी में जाने से पूर्व मेडिकल फिटनेस भी देखा जाता है । क्योंकि घाटी में पुष्पों की संख्या अधिक है अतैव घाटी में विभिन्न प्रकार की खुशबू चलती रहती है जो हृदय रोगियों के लिए घातक सिद्ध हो सकती है । इस लिए सरकार ने स्वस्थ लोगों को ही फूलों की घाटी में जाने की अनुमति दे रखी है । फूलों की घाटी में प्रवेश के लिए एक हिंदुस्तानी को मात्र 150 रुपये चुकाने होते हैं और विदेशी नागरिक को 600 रुपये चुकाने होते हैं ।
किस माह में कैसा होता है नजारा :- यहां जुलाई से अक्टूबर तक मनभावन दृश्य मिलते हैं । यहां आने वाले पर्यटकों के लिए सर्वाधिक फायदेमंद माह अगस्त और सितंबर रहते हैं । यह दोनों ही गर्मी के महीने हैं किन्तु यहां पहुंचने पर पर्यटक ठंड का लुफ्त उठाते हैं । क्योंकि ऊंचे ऊंचे पर्वत हिमाक्षीद्रित हुए रहते हैं जिस कारण ठंडी ठंडी हवाएं चलती रहती हैं । इन चार माहों में अलग अलग प्रकार के फूल यहां खिलते हैं, जिनमे से राज्य पुष्प ब्रह्मकमल सितंबर में इस घाटी की शोभा में चार चाँद लगा देता है । इस सुंदर घाटी की कुछ यादों के साथ आपको छोड़े चलता हूँ । उम्मीद है उत्तराखंड का यह मनभावन रूप आपको पसन्द आएगा ।
जय बद्रीविशाल ।।









