उत्तराखंड में प्रसिद्ध लोकगाथा जिसका अधिकांश अंश समय के साथ साथ लुप्त हो गया और अब यह गाथा बहुत लघु रूप में बची हुई है । उत्तराखंड के रणीहाट नामक स्थान पर गजेसिंह की पिता की हत्या का वृतांत इस कथा का सार है । जब गजेसिंह अपनी पिता के हत्यारों से बदला लेने को आतुर होता है तो गजेसिंह की माँ कहती है – ” रणीहाट नी जाणू गजेसिंह” ऐसे इस गाथा के बोल हैं । जो की गढ़वाली बोली पर आधारित है ।
युवा गजेसिंह अपने पिता की हत्या का बदला लेने हेतु रणीहाट जाने को उतावला हुए जा रहा है । जिस पर उसकी माँ गजेसिंह को समझाती है कि बेटा हमने खेतों में हल जोतने का शुभ दिन निश्चित कर दिया है । तू रणीहाट न जा बेटा, तू बड़े घर का लाडला रूपवान बेटा है । अतैव तेरे बिना मेरा एक पल भी जी नही ठहरता है और तू है कि जिद्द पकड़े हुए है रणीहाट जाना है । यह जिद्द छिड़ दे बेटा । तुम्हारे कानों में सोने के बहुमूल्य कुंडल और हाथों में कड़े हैं । यदि तुम रणीहाट गये तो वहाँ की लुटेरी रानियाँ तुम्हें लूट लेंगी । जब पूर्व में तुम्हारे पिता रणीहाट गये थे तो उनके तन पर सजे बहुमूल्य आभूषणों को देखकर ही वहाँ की रानियों ने उनको लूट लिया और उनकी हत्या कर दी । रणीहाट के लोग हमारे शत्रु हैं बेटा । वहां जाने पर वे तुझे भी मार डालेंगे बेटा । इतने में एक बकरी छींक मरती है और माँ कहती है, बेटा ! तीला बकरी का छींकना अपशकुन का प्रतीक है इसलिए तू रणीहाट जाने के लिए शराबियों वाली जिद्द न पकड़ । किन्तु गजेसिंह अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लिए बिना चैन से बैठने वाला नही था । वह रणीहाट जाने के लिए तैयार हो जाता है और अपनी माँ से कहता है – माँ ! चाहे कोई भी व्यवधान क्यों न आये ? मैं रणीहाट जाऊंगा तो जाऊंगा । जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है माँ, लेकिन जो अपने वचनों से विमुख नही होते उनके वचन अमर हो जाते हैं । गजेसिंह अपनी पिता की हत्या का बदला लेने रणीहाट जा पहुंचता है और वहाँ पहुंच कर अपने पिता के हत्यारों से बदला लेकर अमर हो जाता है जिसकी शौर्य की बची हुई आधी अधूरी गाथा उत्तराखंड में लोकप्रिय है ।
रणीहाट नी जाणू गजेसिंह
मेरो बोल्यूँ माणीयाल गजेसिंह
हौल जोती का दिन छन्न गजेसिंह
तू छैं हौंसिया बैख गजेसिंह
स्या तीला बाखरी गजेसिंह
छट्ट- छट्ट छिकणी गजेसिंह
बड़ा बाबो बेटा तू गजेसिंह
त्यारा कानू का कुंडल गजेसिंह
त्यारा हाथ धागुला गजेसिंह
त्वे सी राणी लूटली गजेसिंह
जौन तेरु बुबा मारी गजेसिंह
वैर्यों को वन्दाण गजेसिंह
त्वे ठौरी मारला गजेसिंह
आज न भोल गजेसिंह
भौं कुछ ह्वे जाण गजेसिंह
मर्द मरिजाण गजेसिंह
बोल रइ जाण गजेसिंह ।
एक गजेसिंह सिंह का उल्लेख माधोसिंह के पुत्र के रूप में भी मिलता है किन्तु यह गजेसिंह भड़ माधोसिंह का पुत्र नही है । माधोसिह ने अपना ग्यारह वर्षीय पुत्र मलेथा की कूल (नहर) के लिए बलिदान कर दिया था ।