
कोटेश्वर महादेव मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो शिव को समर्पित है, और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के केंद्र से लगभग 3 किलोमीटर (3,000 मीटर) की दूरी पर स्थित है, जो अलकनंदा नदी से थोड़ा ऊपर है। यह स्थान उस स्थान के रूप में माना जाता है जहां भगवान शिव ने केदारनाथ के रास्ते पर ध्यान लगाने के लिए रोका था। स्थानीय पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर भस्मासुर के समय से मौजूद है। यह वह दानव था जो किसी के भी सिर को राख कर देता था, जिसके सिर को वह छूता था। कोटेश्वर महादेव में गुफा में आने से पहले विभिन्न स्थानों पर विश्राम करते हुए, भगवान शिव इस खतरे से बचने के लिए छिप गए। शिव ने राक्षस का सामना करने और उसे हराने से पहले, कुछ समय के लिए यहां विश्राम किया। ऐसी ही एक पौराणिक कथा हिमाचल प्रदेश में श्रीखंड महादेव और किन्नर कैलाश से जुड़ी है। इस स्थल की शोध प्रसिद्ध चीनी यात्री युवानच्वांग ने की थी। युवानच्वांग के यात्रा वृतांत में जिस ‘ए-शिफाली’ नगर का उल्लेख कच्छ की राजधानी के रूप में हुआ है सम्भवतः वह कोटेश्वर नामक वर्तमान स्थान ही है। उक्त समय में कोटेश्वर बड़ा बंदरगाह था लेकिन आज बंदरगाह नामशेष हो गया है। इस स्थल पर शैवमन्दिर और पाशुपत साधुओं के मठ थे। वर्तमान कोटेश्वर मन्दिर के एक शिलालेख के अनुसार ये मन्दिर का निर्माण १७१ वर्ष पूर्व विक्रम संवत १८७७ में हुआ था। प्राचीन मन्दिर टूट चूका है और समुद्रतट पर भग्नावशेष आज भी दिखाई पड़ते हैं। वर्तमानकाल में कोटेश्वर और निलकंठ नाम के दो मन्दिर विद्यमान हैं। नारायण सरोवर में भी एक समय कानफ़टे साधुओ का प्रभुत्व था अत: प्राचीन काल में कोटेश्वर भी बड़ा तीर्थस्थल रहा होगा। महाप्रभु वल्लभाचार्य इस स्थल पर 16वीं शताब्दी में आये थे।
कोटेश्वर मंदिर हिन्दुओं का प्रख्यात मंदिर है, जो कि रुद्रप्रयाग शहर से 3 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया था, इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुन: निर्माण किया था। चारधाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही स्थानीय आस पास जनपदों से इस मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय कोटेश्वर मंदिर में स्थित गुफा में साधना की थी। गुफा के अंदर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग यहां प्राचीन काल से ही स्थापित है।
महा शिवरात्रि कोटेश्वर महादेव मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। कोटेश्वर महादेव की मूर्ति को हर चार साल में एक बार एक पालकी में लाया जाता है, जिसे फूलों, गहनों और एक सुनहरे रंग से सजाया जाता है। मूर्ति को एक आकर्षक और डिजाइनर स्वर्ण छतरी के नीचे रखा गया है। मंदिर को सजाया जाता है और महाशिवरात्रि पर पूजा, हवन किया जाता है।