कुमाऊँ के जोहार क्षेत्र में चाँचरी नामक लोकगीत व नृत्य प्रसिद्ध है । इन्ही चाँचरी लोकगीतों में एक ‘मानी-कंपासी’ नामक लोकगाथा भी प्रचलित है । जिसमें पति के विछोह में कंपासी के विरह का अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण मिलता है ।

कुमाऊँ के जोहार क्षेत्र का मुख्य अंग व्यापार होता है । मानी नाम का एक भोटिया व्यापार के उद्देश्य से लद्दाख की और जाने का फैसला करता है । सर्वप्रथम वह शुभ मुहूर्त जानने के उद्देश्य से जोशी पंडित के पास जाता है और पंडित से शुभ दिन की जानकारी प्राप्त कर वापस घर लौटता है । इसी बीच जब परिवार के लोगों को मानी के लद्दाख जाने की सूचना मिलती है तो सभी आशंकित हो उठते हैं । मानी के परिवार वाले कहते हैं- लद्दाख बहुत दूर है व वहां तक जाना इतना सुगम नही और साथ सामान लेकर जाना तो और भी जोखिमभरा होगा । मानी अपने कुशलतापूर्वक वापस घर लौट आने का आश्वासन देकर उनको संतुष्ट करने का सार्थक प्रयास करता है । यह सब सुनकर मानी की पत्नी कंपासी भी आश्चर्यचकित हो उठती है और पूछती है कि तुम तो दूसरे देश जा रहे हो, मैं कहां जाऊँ ? मानी अपनी पत्नी से कहता है कि तुम धैर्य रखना, मैं शीघ्र ही लौट आऊंगा । अपनी पत्नी से मानी कहता है कि यहां मेरे कुछ सगे-सम्बंधी और रिश्तेदार शत्रु हैं, तुम उनसे होशियार होकर रहना प्रिये । अगर मेरे आने में देरी हो जाए तो तुम प्यारी बेटी का विवाह अच्छी जगह कर देना।
यह सब सुनकर पास खड़ी वृद्धा माँ भी आँसू बहाते हुए कहती है कि मानी, तेरे लद्दाख जाने पर हम सब किस प्रकार जीवित रहेंगे । तुझे आने में पता नही कितना वक्त लग जाएगा बेटा । तू कब लौटकर आएगा ? माँ को जवाब देते हुए मानी कहता है- माँ जब राम जी कृपा होगी मैं अपने जोहार लौट आऊँगा । अगले ही दिन मानी व्यापार के लिए लद्दाख यात्रा पर निकल पड़ता है । ईधर प्रियतम से विलग-व्याकुल कंपासी की जवानी के सुनहरे दिन वर्ष से वर्षो में और वर्षो से दशकों में व्यतीत होते जाते हैं, किन्तु पति के दर्शन स्वप्न ही बनकर रह जाते हैं । यहां तक की कंपासी के जीवनकाल का अर्द्धभाग मानी के विरह-पीड़ा और उनके वापस घर लौट आने की प्रतीक्षा में ही गुजर जाता है । उधर मानी लद्दाख की अनन्त यात्रा पर पैदल चल रहा है, चलते चलते उनके सात-आठ जोड़ी जूते फट गये हैं किन्तु वह लद्दाख तक नही पहुंच पाता है।
इस प्रकार प्रस्तुत गाथा में भोटिया व्यापारियों के तत्कालीन अकल्पित संघर्षमय जीवन की अश्रुमय कथा जीवंत होकर सहृदयजनों को निःशब्द बना देती है।