चमोली जिले में जोशीमठ से 100 किलोमीटर दूर भारत-चीन सीमा पर स्थित अंतिम इलाका है नीती। नीती ग से महज दो किलोमीटर दूर नीती महादेव मंदिर है। स्थानीय लोगों में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। शीतकाल के दौरान मंदिर के पास ही एक गुफा में बर्फ का शिवलिंग आकार लेता है। गुफा में शिवलिंग पर पहाड़ी से लगातार जलधारा गिरती रहती है। अमरनाथ की भांति देवभूमि उत्तराखंड में भी एक गुफा में बर्फानी बाबा विराजमान हो जाते है । शीतकाल शुरू होने पर अधिकांश लोग जोशीमठ का रुख कर लेते हैं और शर्दी खत्म होने तक यही रहते है। शीतकाल में यहां पर सेना के जवानों के साथ कुछ ही लोग रहते है । सम्पूर्ण शीतकाल में बाबा को गुफा में पूजा अर्चना की जाती है । नीती उत्तराखंड की अंतिम सीमा और चीनी सीमा के बहुत पास बसा हुआ । अतैव सुरक्षा की लिहाज से बहुत सम्वेदनशील माना जाता है । यहां बाहरी लोगों को आने के अनुमति नही है । इसलिए यहां अमरनाथ की तरह यात्रा नही होती है । ग्रीष्मकाल में पर्यटक यहां जा सकता है लेकिन शीतकाल में सुरक्षा के मध्यनजर किसी प्रकार का पर्यटन अम्भव नही है । नीती प्रकृति की गोद में बसा बहुत ही खूबसूरत गांव है । नीती से 150 किलोमीटर दूर प्रकृति का दूसरा अद्भुत करिश्मा है माणा गांव । माणा के बारे में दूसरा पूर्ण लेख आपको इसी वेबसाइट के उत्तराखंड भ्रमण स्थल नामक मेनू पेज में मिल जाएगा । दरअसल नीती उस पूरी घाटी को कहा जाता है जिसका विस्तार धौली गंगा नदी के इर्द-गिर्द फैलता हुआ तिब्बत की सीमाओं तक को छूता है । द्रोणागिरी इसी नीती घाटी में ही बसा एक बेहद खूबसूरत गांव है । इस गांव की कई खूबियां हैं । इनमें से एक यह भी है कि यह गांव साल में सिर्फ छह महीने ही आबाद होता है लेकिन जब आबाद होता है तब यह कमाल होता है । जोशीमठ से मलारी की तरफ लगभग 50 किलोमीटर आगे बढ़ने पर जुम्मा नाम की जगह पड़ती है । यहीं से द्रोणागिरी गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू होता है ।यहां से धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी तरफ सीधे खड़े पहाड़ों की श्रृंखला दिखाई पड़ती है । उस श्रृंखलाको पार करने के बाद ही द्रोणागिरी तक पहुंचा जाता है । संकरी पहाड़ी पगडंडियों वाला तकरीबन दस किलोमीटर का यह पैदल रास्ता काफी कठिन व रोमांचक से भरा होता है । द्रोणागिरी गांव से ऊपर बागिनी, ऋषि पर्वत और नंदी कुंड जैसे कुछ चर्चित स्थल हैं जहां गर्मियों में तो गाड़िया पहुंच जाती है लेकिन शीतकाल में यह जगह वीरान हो जाती है ।

नीति घाटी में मुख्य रूप से भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। द्रोणागिरी भी भोटिया जनजाति के लोगों का ही एक गांव है । लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में करीब सौ परिवार रहते हैं । मई में जब बर्फ पिघल जाती है, तो एक बार फिर से द्रौणागिरी आबाद होता है। तब गांव के लोग यहां वापस लौट आते हैं । छः महीनों तक वीरान रहे गांव में जब लोग वापस आते हैं तो सबसे पहले यहां एक अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है । गांव के लोगों का मानना है कि जब लंबे समय तक घर खाली रहते हैं तो उनमें नकारात्मक शक्तियां निवास करने लगती हैं। इसीलिए रगोसा के जरिये पूरे गांव का शुद्धिकरण किया जाता है। रगोसा में सार्वजानिक अनुष्ठान के बाद गांव के चारों तरफ कुछ अभिमंत्रित कीलें ठोक दी जाती हैं। गांव के लोग मानते हैं कि ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां गांव में दाखिल नहीं होती हैं । द्रोणागिरी में एक खजाना भी छिपा हुआ है जिसकी खोज गांव वाले हर साल किया करते हैं और इसका कुछ हिस्सा उन्हें इस दौरान हासिल भी हो जाता हैं । इस खजाने का नाम है कीड़ा जड़ी । जी हाँ कीड़ा जड़ी इसका नाम इसलिए है क्योंकि ये कीड़े के आकार की होती है । कीड़ा जड़ी एक ऐसी जड़ी-बूटी है जिसके लिए माना जाता है कि यह यौन शक्ति बढ़ाने का काम करती है । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसका मूल्य 16-20 लाख रु. प्रति किलोग्राम तक है । चीन, हांगकांग, कोरिया व ताईवान के अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कीड़ा जड़ी का व्यापारिक नाम यारसा गंबू है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों की एक तितली के लार्वा पर फंफूंद के संक्रमण से जंतु-वनस्पति की यह साझा विशिष्ट संरचना बनती है । पूरे प्रदेश में याक भी कहीं नही मिलते लेकिन द्रौणागिरी पर याक भी पाए जाते हैं । यहां एक-दो संस्थाएं याक की ब्रीडिंग करने के प्रयास जरूर कर रही हैं लेकिन इसके अलावा पूरे प्रदेश में याक ढूंढने से भी नहीं मिल सकते हैं । द्रोणागिरी में याकों के इस झुंड की कहानी भी बेहद दिलचस्प है । गांव वाले बताते हैं कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय सैनिक कई सारे याक और बकरियां चीन से ले आए थे। वे बकरियां तो अब नहीं रही लेकिन याकों के कुछ वंशज आज भी द्रोणागिरी गांव के ऊपर की पहाड़ियों में आसानी से दिख जाते हैं। उत्तराखंड के पशुपालन विभाग को इनकी देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है । इस घाटी की एक और कहानी चौकाने वाली है । इस गांव में हनुमान जी की पूजा कभी नहीं होती है । गांव के लोग हनुमान से नाराज़ हैं और उनके पास इसका कारण भी है । द्रोणागिरी गांव के लोग ‘पर्वत देवता’ को अपना आराध्य मानते हैं और यहां सबसे बड़ी पूजा द्रोणागिरी पर्वत की ही होती है । यह वही द्रोणागिरी पर्वत है जिसका जिक्र रामायण में संजीवनी बूटी के संदर्भ में मिलता है । मान्यता है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण मूर्च्छित हुए थे तो हनुमान संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी ही आए थे और जब उन्हें समझ में नहीं आया कि यह बूटी है कौन सी तो वे इस पर्वत का एक हिस्सा ही उखाड़ कर ले गए थे। गांव के लोग मानते हैं कि हनुमान उस समय उनके द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा उखाड़ कर ले गए थे । पूरी नीती घाटी की असल खूबसूरती बरसात और उसके बाद ही निखरती है । तब गांव के पास ही दुर्लभ ब्रह्मकमल (उत्तराखंड का राज्य पुष्प) आसानी से खिले हुए देखे जा सकते हैं । गांव के पास के बुग्याल भी उस दौरान अपनी खूबसूरती के चरम पर होते हैं ।




