कुमाऊँ के जोहार क्षेत्र में चाँचरी नामक लोकगीत व नृत्य प्रसिद्ध है । इन्ही चाँचरी लोकगीतों में एक ‘मानी-कंपासी’ नामक लोकगाथा भी प्रचलित है । जिसमें पति के विछोह में कंपासी के विरह का अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण मिलता है । कुमाऊँ के जोहार क्षेत्र का मुख्य अंग व्यापार होता है । मानी नाम का एक […]
गजेसिंह लोकगाथा
उत्तराखंड में प्रसिद्ध लोकगाथा जिसका अधिकांश अंश समय के साथ साथ लुप्त हो गया और अब यह गाथा बहुत लघु रूप में बची हुई है । उत्तराखंड के रणीहाट नामक स्थान पर गजेसिंह की पिता की हत्या का वृतांत इस कथा का सार है । जब गजेसिंह अपनी पिता के हत्यारों से बदला लेने को […]
जसी की लोकमानस गाथा
जसी अपनी माता-पिता की इकलौती संतान है, जिसका विवाह कोलागढ़ के योद्धा से होता है । एक दिन जब उसका पति किसी कार्य हेतु घर से बाहर गया होता है तो क्रुद्ध सास द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है । पति के लौट आने पर पत्नी की दुखद मृत्यु का समाचार पाकर उसको बहुत […]
त्रिमल चंद लोकगाथा
यह लोकगाथा कुमाऊँ क्षेत्र की प्रसिद्ध व लोकप्रिय लोकगाथाओं में एक है । त्रिमल चंद के पिता विजय चंद की अयोग्यता के कारण कुमाऊँ के तात्कालिक राजा की मृत्यु के बाद राज्य की सम्पूर्ण बागडोर राज्य के मंत्रियों के हाथों में चली जाती है । मंत्रियों ने अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अंदर ही […]
सरू कुमैण लोकगाथा
यह लोकगाथा प्रसंग सरू तथा भड़ पुरुष गढु सुम्याल पर आधारित है । एक साल गढु सुम्याल के गढ़ खिमसारीहाट में अन्न का अकाल पड़ जाता है और वह अपनी माँ को लेकर अरुणीवन चला जाता है । जहाँ भैंस पालन कर दोनों माँ बेटा अपना जीवन यापन करने लगते हैं । अरुणीवन में गढु […]
तिलोगा तड़ियाली लोकगाथा
पौड़ी गढ़वाल के क्षेत्र बनेलस्यू में व्यासघाट के निकट तिलोगा अमरदेव के प्रसिद्ध प्रेम का स्मारक आज भी एक चौरें (टीले) के रूप में विद्यमान है । इसी स्थान पर तिलोगा के प्रेम अमरदेव सजवाण के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके पत्थरो के बीच टीले के रूप में चुनवा दिया गया था । तिलोगा गंगा के इस […]