यह लोकगाथा भैसों की लड़ाई करवाये जाने से प्रासंगिक है । रतनुवां और पाँजा दोनों ही अपनी अपनी भैसों का आपस में शक्ति प्रदर्शन करवाते हैं । फलस्वरूप पाँजा रौतेला की भैंसों को इस शक्ति प्रदर्शन में मात खानी पड़ती है, जिस कारण पाँजा रौतेला लज्जित हो जाती है । लेकिन उसके सौंदर्य से मोहित रतनुवां उस पर आसक्त हो जाता है और पाँजा से उसका नाम और पता पूछ लेता है । अंत में पाँजा घर सँगरामीकोट चली जाती है ।

एक दिन रतनुवां सँगरामीकोट ही पहुँच जाता है वहां पाँजा के पिता से उसका हाथ मांगने का आग्रह करता है, किन्तु पाँजा का पिता अपनी पुत्री का विवाह करने से पूर्व उसके भावी पति की वीरता की परीक्षा लेना चाहता है । अतैव वह शर्त रखता है कि उसे विवाह से पूर्व सूर्यवंशी घोड़ी लेकर आना होगा । यह सुनकर रतनुवां सूर्यवंशी घोड़ी की खोज में निकल जाता है । रतनुवां को कुछ ही समय में घोड़ी तो मिल गयी लेकिन उसको साधने में उसको सात दिन व सात राते व्यतीत हो गयी । जब वह वापस लौटकर आया तो पता चला कि पाँजा का विवाह सौक्याण देश में कर दिया गया है । यह सुनकर रतनुवां को बहुत क्रोध आता है लेकिन वह अकेला था अतैव उसने अपनी वीरता दिखानी उचित नही समझी । उसको एक युक्ति सूझी ! रतनुवां ने पाँजा के नाम का योग धारण कर लिया, शरीर में भभूत लगाई, कांधे में राख से भरी झोली लटकाई, एक हाथ में कंगन और दूसरे हाथ में चिमटा लिए पाँजा के नाम की अलख जगाए हुए भ्रमण करने लगा ।
जगह जगह भटकते हुए एक दिन वह सौक्याण देश पहुंच जाता है । वहां पहुंच कर उसकी भेंट पाँजा से होती है । पश्चात उनको पता चलता है कि वहां पाँजा भी रतनुवां के नाम का व्रत धारण किए उसी की प्रतीक्षा में जीवन व्यतीत कर रही है । उनके इस मिलन की खबर पूरे सौक्याण देश में आग के समान फैल जाती है । अपने सौक्याण देश की महिला के साथ प्रेम प्रसंग को सुनकर वहाँ रहने वाले शक्तिशाली बहादुर रतनुवां से भिड़ने के लिए उतावले हो जाते हैं । उसके बाद एक एक कर सभी बहादुर रतनुवां से भिड़ते हैं लेकिन सभी परास्त हो जाते हैं और रतनुवां पाँजा को लेकर वापस सँगरामीकोट पहुंजाता है । उसके वहां पहुचने से पाँजा का पिता भयभीत हो जाता है क्योंकि उसने अपने पुत्री के लिए पति का वरण वीरता के आधार पर ही सौक्याण देश में किया था । रतनुवां को देखते ही पाँजा का पिता समझ गया की वीरता में रतनुवां की कोई थाह नही है अतैव उसने सम्मान के साथ पाँजा के विवाह का प्रस्ताव रतनुवां के लिए रख दिया । बारात धूम धाम के साथ दिगोलीकोट पहुंचती है, जहां रतनुवां के माता पिता अपने लापता हुए पुत्र को देखकर अतिउत्साहित हो उठते हैं । रतनुवां के बहू को लाने का समाचार पाकर दिगोलीकोट में हर्षोल्लास की लहर दौड़ जाती है तथा घर घर में बधाई के बाजे बजने लगते हैं । आखिर गांव का वीर भड़ जो गांव लौट आया था और साथ में बहू भी लाया था ।