सेम-मुखेम नागराज उत्तराखंड गढ़वाल मण्डल के अंतर्गत टिहरी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। दरअसल मुखेम और सेम दो अलग अलग स्थान है । मुखेम से पांच किलोमीटर आगे तलबला सेम आता है जहाँ एक लम्बा-चौड़ा हरा-भरा घास का मैदान है। इसी मैदान के किनारे पर नागराज का एक छोटा सा मन्दिर है। परम्परा के अनुसार पहले यहाँ पर दर्शन करने होते हैं। उसके बाद ऊपर मन्दिर तक पैदल चढ़ाई करनी होती है । सेम-मुखेम का मार्ग हरियाली और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है। मुखेम के आगे रास्ते में प्राकृतिक भव्यता और पहाड़ की चोटियाँ मन को रोमाँचित करती हैं। रमोली पट्टी बहुत सुन्दर है। रास्ते में श्रीफल के आकार की खूबसूरत चट्टान है। सेममुखेम में घने जंगल के बीच मन्दिर के रास्ते में बांज, बुरांस, खर्सू, केदारपत्ती के वृक्ष हैं जिनसे निरन्तर खुशबू निकलती रहती है। मार्ग पर आगे बढ़ते हुए स्थानीय लोगों के हरे भरे खेतों के दर्शन होते हैं । यहां पहुंचने ले लिए श्रीनगर गढ़वाल के रास्ते पर गडोलिया नामक छोटा कस्बा आता है। यहाँ से दो रास्ते निकलते हैं एक नई टिहरी के लिये जाता है और दूसरा लम्बगाँव के लिए । अगर लम्बगाँव के रास्ते पर आगे बढ़े तो रास्ते में टिहरी झील देखने को मिलती है। लम्बगाँव वाला रास्ता सेम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव होता है। पहले जब सेम-मुखेम तक सड़क नहीं थी तो यात्री एक रात लम्बगाँव में विश्राम करने के बाद दूसरे दिन अपनी यात्रा शुरु करते थे। सेम-मुखेम के मैदान तक वाहन चाले जाते हैं । मैदान काफी बड़ा है अतैव पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है । मैदान से 15 किलोमीटर की खड़ी चढ़ायी चढ़ने के बाद सेम नागराजा के दर्शन किये जाते थे। आज मन्दिर से महज ढायी किलोमीटर नीचे तलबला सेम तक ही सड़क पहुंच चुकी है। लम्बगाँव से 33 किलोमीटर का सफर बस या टैक्सी द्वारा तय करके तलबला सेम तक पहुँचा जा सकता है।

यहां पहुंचते ही सबसे पहले मुख्य द्वार के दर्शन होते हैं । मन्दिर का भव्य द्वार 14 फुट चौड़ा तथा 27 फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन दर्शाए गए हैं। मन्दिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दाँयी तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण कालिया नाग का उधार करने आये थे। इस स्थान पर उस समय गंगु रमोला का अधिकार था लेकिन जब श्री कृष्ण ने उनसे यहाँ पर कुछ भू-भाग मांगना चाहा तो गंगु रमोला ने यह कह के मना कर दिया कि वह किसी चलते फिरते राही को जमीन नही देते। फिर श्री कृष्ण ने अपनी माया दिखाई और गंगु रमोला ने हिमा नाम की राक्षस का वध की सर्त पर कुछ भू भाग श्री कृष्ण को दे दिया था । कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि जो सेम-मुखेम के पंडित हैं उनकी भूमि नागराज द्वारा श्रापित हो गई थी जिस कारण उनको साल में एक बार भिक्षा करने भिक्षु भेस में जाना पड़ता है । बहुत समय पहले सेम-मुखेम के लोग भिक्षा करने आते भी थे किन्तु अब समय के साथ-साथ वे लोग नही दिखते हैं । हाँ एक व्यक्ति मेरे परिवार से परिचित हुए थे, वे जरूर हर साल भिक्षा करने आते थे लेकिन पिछले एक दो वर्ष से वे भी नही दिखाई दे रहे हैं । वे बताते थी कि उनका परिवार सम्पन्न है । बेटा सरकारी सेवा में कार्यरत है लेकिन पौराणिक मान्यताओं के आधार पर वह अपने कर्म को छोड़ना नही चाहते । सेम-मुखेम का प्राकृतिक दृश्य देखने लायक है । प्राकृतिक रूप से सम्पन्न सेम-मुखेम लाखों करोड़ो लोगों के लिए आस्था का केंद्र है ।