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पहाड़ समीक्षा

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तिलोगा तड़ियाली लोकगाथा

by staff

पौड़ी गढ़वाल के क्षेत्र बनेलस्यू में व्यासघाट के निकट तिलोगा अमरदेव के प्रसिद्ध प्रेम का स्मारक आज भी एक चौरें (टीले) के रूप में विद्यमान है । इसी स्थान पर तिलोगा के प्रेम अमरदेव सजवाण के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके पत्थरो के बीच टीले के रूप में चुनवा दिया गया था ।

तिलोगा गंगा के इस ओर वर्तमान बनेलस्यू के तैडी गाँव के सामंती ठाकुर परिवार की कन्या थी । तिलोगा के आगे स्वर्ग की अप्सरा भी तुच्छ लगती थी, वह दिखने में इतनी सुंदर थी । और गंगापार वर्तमान टिहरी के भरपूर गाँव का सजवाण ठाकुर अमरदेव अपनी वीरता के लिए प्रख्यात था। कहा जाता है कि गढ़वाल के तत्कालीन महाराज द्वारा उसको अजमेर पट्टी के ‘भद्यो असवाल’ को परास्त करने के लिए भेजा गया था । उस वर्ष व्यासघाट के निकट बिखोद के दिन सिल्सू देवता का मेला लगता है । इस मेले में तैडी गांव की ठाकुर कन्या तिलोगा भी आती है और उस मेले में टिहरी भरपूर गांव का अमरदेव सजवाण भी पहुंच जाता है । वहीं मेले की भीड़-भाड़ के बीच दोनों की नजर एक दूसरे से मिलती हैं और दोनों एक दूसरे में आसक्त हो जाते हैं । कुंड के स्नानपर्व के समय दोनों एक दूसरे के करीब हो जाते हैं और आपस में हमेशा मिलने का वचन लेते हैं । साँझ होने पर मेले से सभी लोग अपने अपने घरों को लौटने लगते हैं । दोनों प्रेमियों का मन बिछुड़ने की बेला में तड़पने लगता है ।

दोनों ने बिछड़ने से पहले यह निश्चय किया कि आज से भरपूर गांव का अमरदेव सजवाण अंधेरा होने पर अपने घर मे मसाल जलाएगा और इधर से तिलोगा उस मसाल को देखेगी । जब वह मसाल बुझेगी तो यह मान लिया जायेगा कि अमरदेव सजवाण तिलोगा से मिलने के लिए घर से निकल पड़ा है । अमरदेव ज्योंही गढ़ के समीप पहुंचेगा, तिलोगा भी अपना दीपक बुझा देगी । अब प्रतिदिन साँझ को रोशनी जलने लगती है और दस मिल की दूरी से रोशनी से ही प्रेममिलन का संकेत शुरू हो गया । अमरदेव सुंदरी तिलोगा के प्रेम में इतना आसक्त हो गया कि संध्या होते ही गंगा की विशाल लहरों को पार कर वह अपनी प्रेमिका के पास तैडी गांव पहुँच जाता है और सबेरा होने से पूर्व ही उसी प्रकार लहरों को पार कर अपने गांव भरपूर पहुंचा जाता है । यही क्रम बहुत समय तक चलता रहा लेकिन उनका इस प्रकार छुप कर मिलना कब तक छुपा रह सकता था । पूरे गांव में दोनों की चर्चाएं होनी लगी ।

उधर तिलोगा के विवाह की बात पड़ोस के ही गांव के बुटोला परिवार में तय हो चुकी थी । अतः उनको भी तिलोगा और अमरदेव के गुप्त मिलन का समाचार प्राप्त हो गया । फिर क्या था ? सभी लोग अमरदेव की जान के दुश्मन बन गए और एक दिन उन दोनों को रंगे हाथों प्रेमालाप करते हुए पकड़ लिया । तिलोगा के मायके और भावी ससुराल वाले लाठी-डंडों से अमरदेव पर टूट पड़े । तिलोगा सबके आगे पैर पड़ती रही की इनको छोड़ दो, जो भी सजा देनी है मुझे दो । तिलोगा सबको वचन देती है कि वह भविष्य में अमरदेव से कभी नही मिलेगी । किन्तु किसी ने उसकी प्रार्थना नही सुनी । निर्दयी लोगों ने अमसेरा के खेतों में अमरदेव के ऊपर कुल्हाड़ी और नुकीले हथियारों से प्रहार कर उसके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर डाले । अपने प्रेम की क्रूरतावश हत्या को देखकर तिलोगा की आंखों में मानो खून उतर आया । अब उसका जीवन भी निरर्थक था । अतैव लज्जा त्यागकर उसने धारदार  हथियार से अपने दोनों स्तन काटकर जमीन पर स्थित पानी के स्थान में फेंक दिए और शाप दिया, कि जो इस पानी को पिएगा वह कोढ़ी (सफेद दाग युक्त शरीर) हो जाएगा । और तत्क्षण तिलोगा ने भी वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए ।

अमरदेव के शरीर के टुकड़ो को एक चौतरा (चबूतरा) बना के उसमें चुनवा दिया गया । वह आज भी विद्यमान है तथा इसको “सौल्या” चौंरा के नाम से पुकारा जाता है । कुछ लोग उसको शत्रु मानकर आज भी पत्थर से मारते हैं और निकट स्थित बावड़ी (पानी का स्थान) से आज भी कोई पानी नही पिता है । आज तक इस गांव पर तिलोगा का दोष फलीभूत हो रहा है । तिलोगा और अमरदेव के पस्वा (प्रेत या देव) रूप में बड़े आक्रामक या भयंकर ढंग से नाचते हैं ।

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